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पंडित नेहरू के जन्मदिन के अवसर पर ट्विटर पर लगातार दो दिनों से #RememberingNehru ट्रेंड कर रहा है, लेकिन सवाल ये है — क्या हमें पंडित नेहरू को याद करना चाहिए, जिसने अपनी नाकामी, अड़ियल सोच और परिवारवाद के चलते भारत को वर्षों पीछे धकेल दिया? 

जिसने कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना दिया, चीन को दोस्त मानकर देश को युद्ध में झोंक दिया, और अमेरिकी समर्थन के बावजूद परमाणु शक्ति बनने का मौका ठुकरा दिया! जिसकी वजह से आज भी हर साल हमारे जवान सीमा पर मरते हैं, और आम नागरिक आतंकी हमलों में जान गंवाते हैं! 


नेहरू को याद करना मतलब उस इतिहास को महिमामंडित करना है जिसने देश की सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और वैश्विक ताकत बनने के रास्ते को रोक दिया! #RememberingNehru नहीं,  आज हम #RevealingNehru करेंगे — ताकि देश को इनका असली चेहरा दिखाया जा सके! नमस्कार दोस्तों मेरा नाम विशाल कुमार सिंह है और ये वीडियो आप देख रहे है आप bharatidea पर।


First 

दोस्तों आज का विषय है: पंडित नेहरू की वो 8 सबसे बड़ी ऐतिहासिक भूलें, जिनकी कीमत भारत आज तक चुका रहा है। 


नेहरू की पहली गलती, भारत का विभाजन। 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ, लेकिन खंडित होकर। क्या विभाजन रोका जा सकता था? तो जवाब है हाँ! अगर नेहरू चाहते, तो देश को दो टुकड़ों में बंटने से रोका जा सकता था।

महात्मा गांधी ने खुद कहा था — “भारत का विभाजन मेरी लाश पर होगा।” लेकिन नेहरू तो प्रधानमंत्री बनने के लिए इतने उतावले थे कि जिन्ना और माउंटबेटन की बातों के आगे झुक गए।

30 लाख से ज्यादा हिंदू-सिखों का कत्लेआम हुआ, लाखों माताओं-बहनों का बलात्कार हुआ, लेकिन नेहरू चुप रहे। आर्य समाज, हिंदू महासभा, RSS — सबने विरोध किया, लेकिन नेहरू ज़िद पर अड़े रहे।




Second 

नेहरू की दूसरी गलती, कश्मीर और युद्धविराम

हमारा देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ था और पाक ने 22 अक्तूबर 1947 को भारत पर आक्रमण करके हमारी 83000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर लिया। उसमें लगभग 50 हजार हिंदू-सिख मारे गए थे।

भारत की सेना जब आगे बढ़ रही थी तो देश के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने एक भयंकर भूल की तथा एक तरफा युद्ध विराम की घोषणा करके सेना के बढ़ते कदमों को रोक दिया और कश्मीर समस्या को यू.एन.ओ. में ले गए।

आज जो पी.ओ.के है, जहां आतंकी खुलेआम ट्रेनिंग लेते हैं — वह ज़मीन नेहरू के कारण ही भारत से अलग हुई।

क्या यह सिर्फ राजनीतिक भूल थी? नहीं! यह देश की सुरक्षा से किया गया सबसे बड़ा समझौता था।





नेहरू की तीसरी गलती, धारा 370 लागू करना जब जम्मू-कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय हो चुका था, तब पंडित नेहरू ने अपने प्रिय मित्र शेख अब्दुल्ला के कहने पर धारा 370 लागू कर दी मतलब एक देश दो संविधान...एक भारत, लेकिन दो कानून?

भारत का कोई नागरिक कश्मीर में ज़मीन नहीं खरीद सकता था, लेकिन कश्मीर का नागरिक भारत में कहीं भी बस सकता था! ये किस तरह का न्याय था?

धारा 370 ने कश्मीर को कट्टरपंथ और आतंकवाद की जमीन बना दिया — और दशकों तक देश जलता रहा।

शुक्र है, मोदी जी और अमित शाह ने इस कलंक को हटा दिया। लेकिन इसकी जड़ें किसने बोई थीं? नेहरू ने!




नेहरू की चौथी गलती, नेपाल का विलय न करना

1952 में नेपाल के राजा विक्रमशाह ने भारत में विलय की इच्छा जताई थी लेकिन नेहरू ने विलय से इनकार कर दिया था। अगर नेपाल भारत का हिस्सा बनता, तो यह एक सांस्कृतिक, धार्मिक और सामरिक मजबूती होती। लेकिन नेहरू ने इसे ठुकरा दिया।

आज नेपाल चीन और भारत के बीच एक बफर स्टेट नहीं, बल्कि चीन के एजेंडे पर चलने वाला कम्युनिस्ट देश बन चुका है। जिसके परिणाम स्वरूप आज चीन हम पर भारी पड़ता है।

नेहरू की पांचवीं गलती – तिब्बत और चीन युद्ध

1954 में पंचशील समझौते के तहत पंडित नेहरू ने तिब्बत को चीन का भाग मान लिया। तिब्बत जो भारत और चीन के बीच एक सुरक्षा दीवार था — उसे चीन की गोद में डाल दिया गया।

नेहरू “हिंदी-चीनी भाई-भाई” के सपने देख रहे थे, और चीन 1962 में तिब्बत के ही मार्ग से भारत पर हमला कर दिया जिसमें भारत को शर्मनाक हार हुई थी और हमने 14,000 वर्ग किलोमीटर जमी खो दिया था और आज भी वो 14,000 वर्ग किलोमीटर ज़मीन चीन के कब्ज़े में है। इसका ज़िम्मेदार कौन है?

नेहरू की छठी गलती थी, संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता को ठुकराना :

2004 में The Hindu की रिपोर्ट और खुद कांग्रेस नेता शशि थरूर की किताब "Nehru: The Invention of India" के मुताबिक — पंडित नेहरू ने भारत को मिलने वाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट को ठुकरा दिया, और वो सीट चीन को दिलवा दी थी!

जी हां, आपने सही सुना — चीन, जो आज हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के खिलाफ वीटो लगाता है, पाकिस्तान को बचाता है, और आतंकियों को ग्लोबल आतंकी घोषित करने से रोकता है — उसे ये ताकत नेहरू ने ही दिलाई थी!

इस गलती की कोई पुख्ता जानकारी नहीं है लेकिन थरूर के अनुसार उन्होंने ये दावा कई भारतीय राजनयिकों से हुई बातचीत के आधार पर अपनी किताब में किया था। अगर ये सच है, तो यह सिर्फ भूल नहीं, बल्कि भारत के भविष्य से किया गया ऐतिहासिक विश्वासघात था। नेहरू ने भारत को ठुकराया, चीन को चुना — और उसकी कीमत आज भी पूरा देश चुका रहा है!


नेहरू की सातवीं गलती थी, परमाणु प्रस्ताव को ठुकराना

"साल था 1963 अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी ने भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को एक गोपनीय प्रस्ताव भेजा..."

कैनेडी ने साफ शब्दों में कहा कि — ‘भारत को एशिया का पहला परमाणु शक्ति राष्ट्र बनना चाहिए, इससे पहले कि चीन परमाणु बम बना ले। लेकिन... नेहरू ने ये प्रस्ताव ठुकरा दिया। क्यूं?"

"क्योंकि पंडित नेहरू परमाणु हथियारों के ख़िलाफ़ थे। वो झूठे आदर्शवाद में डूबे हुए थे, जबकि चीन हकीकत में बम बना रहा था।" "और हुआ वही जिसका डर था — 1964 में चीन ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया, और भारत पीछे छूट गया।"

“नेहरू के इनकार ने भारत की सुरक्षा और वैश्विक ताकत बनने का सपना 10 साल पीछे धकेल दिया।”

नेहरू की आठवीं गलती थी, तुष्टिकरण की राजनीति

धर्म के आधार पर देश का विभाजन हो चुका था — इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान बन गया — लेकिन नेहरू ने उसी मुस्लिम आबादी को भारत में पूरे नागरिक अधिकारों के साथ बसने की आज़ादी दे दी।

सिर्फ इतना ही नहीं — जब राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने हिंदू कोड बिल पर दो बार लिखित आपत्ति जताई, तो पंडित नेहरू ने उनकी बातों को पूरी तरह अनदेखा कर दिया। उन्होंने न तो उनकी शंकाओं का समाधान किया, न संवाद का रास्ता अपनाया — बल्कि तीसरी बार बिल पास कराने के लिए उन्हें इंपीचमेंट की धमकी दे डाली!

डॉ. राजेंद्र प्रसाद चाहते थे कि भारत में एक समान नागरिक संहिता लागू हो — यानी सभी धर्मों के लिए एक समान कानून। लेकिन नेहरू ने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए इसे साफ तौर पर ठुकरा दिया, क्योंकि वो जानते थे कि अगर यह लागू हुआ तो मुस्लिमों की जनसंख्या पर नियंत्रण लगेगा, और उनका वोटबैंक खतरे में पड़ जाएगा।

नेहरू की यही नीति थी — हिंदुओं पर कानून, मुस्लिमों पर छूट! जिस देश को धर्म के नाम पर बांटा गया, उस देश में बहुसंख्यकों को नियमों में जकड़ देना और अल्पसंख्यकों को छूट देना — क्या यही धर्मनिरपेक्षता थी? नहीं! यह छिपा हुआ विभाजन था, जो आज भी देश को तोड़ रहा है।

अब वक्त है, #RevealingNehru का — ताकि इतिहास के वो पन्ने खोले जा सकें, जिन्हें जानबूझकर छिपाया गया!

"नेहरू ने भारत को वैश्विक स्तर पर कमजोर किया... इंदिरा गांधी ने देश के अंदर लोकतंत्र को कुचला... और अब कांग्रेस उसी विरासत को ढो रही है, जिसमें परिवार पहले, देश बाद में आता है।"

"अगर नेहरू ने 1963 में हां कह दिया होता, तो भारत दुनिया का छठा नहीं, तीसरा परमाणु शक्ति राष्ट्र होता। इतिहास को भूलिए मत, क्योंकि यही इतिहास आज भी हमारी नीतियों को प्रभावित करता है।"

#RememberingNehru या #RethinkingNehru? सोचिए... और विचार करिए कि आपको किस इतिहास का हिस्सा बनाना है उन वामपंथियों का जो इनके इतिहास को छुपाने के नाम पर झूठे फैक्ट्स चेक कर इनकी गलतियों पर पर्दा डालते है या उन राष्ट्रवादियों का जो आजादी के बाद से लगातार आपको सच्चाई दिखाने की कोशिश कर रहे।

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